तुम वीर क्षत्रिय सा,
हो शूरवीर।
बढ़े कदम जिस ओर कभी,
दहले दुश्मन, हो अधीर।
राष्ट्र भक्ति रग–रग में बहती,
सागर सा दिल में देश प्रेम,
कोई अतिशयोक्ति नहीं, कहूं जो
धीर तुम हो महावीर।
तुम वीर क्षत्रिय सा,
हो शूरवीर।
बस्ती बसी जैसे तेरी,
जीभ दांतों के बीच।
होकर अडिग, पेश किया विश्व को,
निज शौर्य का एक नजीर।
तुम वीर क्षत्रिय सा,
हो शूरवीर।
है यकीन विश्व को तुम पर,
हो तुम इस नव युग के राम।
ध्रुवतारा सा चमकोगे एक दिन,
नभ में घोर तिमिर चीर।
तुम वीर क्षत्रिय सा,
हो शूरवीर।
...जितेंद्र कुमार
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