"यशोदा विलाप"
मन करे देखूं तुझे, कान्हा चले आओ।
वंशी बजाकर कान्हा दिल बहलाओ।
छोड़ के गोकुल जाकर बसा द्वारिका,
ढूंढे तुझे ग्वाल बाल रोती है राधिका।
मधुबन है सूखा गौएं भी रूठी,
सूना तेरे बिना सारी गोकुल नगरी।
एक बार आकर कान्हा सबको मनाओ,
वंशी बजाकर कान्हा दिल बहलाओ।
कान्हा- कान्हा पुकारूं यशोदा माई,
ढूंढते- ढूंढते थक के हारी।
आंख से आंसू रोके नहीं रुकती,
अखियां तेरे दरस को प्यासी।
एक बार आकर कान्हा दरस दिखाओ,
वंशी बजाकर कान्हा दिल बहलाओ।
पलना देख -देख आंख को सेंकू,
देख तेरी छवि कान्हा बार - बार रोऊं।
मन नहीं माने कान्हा कैसे मनाऊं?
मन कहे जाकर तुझे माखन खिलाऊं।
एक बार आकर कान्हा माखन चुराओ,
वंशी बजाकर कान्हा दिल बहलाओ।
..जितेंद्र कुमार
2 Comments
Mast hai
ReplyDeleteThank you
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