"जल संकट"

"जल संकट"

"जल संकट"

हे मनुज तू प्रबुद्ध प्राणी है।
फिर क्यों न करो एक बात अमल?
ले रहा  विकराल रूप संकट,
शायद धरा पर कल हो ना जल।

बढ़ चला शान से किस पथ आगे,
पीछे मुड़ देख उसको एक बार।
गला पकड़ मर जाते प्यासे,
प्यासी ओठ को मदद का इंतजार।

कर स्वीकार दोष को अपना, 
करता कौन अफसोस यहां? 
कर दूषित नदी, ताल, तलैया,
कहता सब निर्दोष यहां।

मिल सभी जन आगे आएं,
करें पूरी अपनी जिम्मेदारी। 
रखें सहेज वर्षा का जल हम,
यह जल संचय अति जरूरी।

करें खुदाई कुआं, ताल, 
तभी बढ़ेगा भूजल भंडार। 
दूषित ना हो मीठा जल अपना, 
चाहे करें उपाय हजार।

वह समय अब दूर नहीं, 
जब होगी पानी की लूट। 
करना पड़े तो रण भी होगा, 
पाने को उस पानी की घूंट।

             ..जितेंद्र कुमार

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