"बढ़ती जनसंख्या"

"बढ़ती जनसंख्या"

"बढ़ती जनसंख्या"

जनसंख्या के तीव्र प्रवाह में,
बह गयी मेरी मानवता। 
गए भूल परिवार नियोजन, 
फैल गई है दानवता।

खड़ा है इसके आगे कानन,
मांग रहा है इससे माफी। 
पर कितना निर्दयी है मानव,
फाड़ रहा है इसका छाती

हित के लिए कह रही प्रकृति, 
रोक लो अपनी तीव्र आबादी। 
विकट समस्याएं पैदा होगी, 
जन-धन की होगी बर्बादी।

सत्य पथ पर चल रही प्रकृति, 
सत्य पर चलना धर्म है। 
यह सत्य पथ बनाने वाला, 
खुद मानव का दुष्कर्म है।

होगा कल्याण किसी परिवार का, 
जब होगा छोटा आकार। 
देश उत्थान अवश्य करेगा, 
मनोकामना होगी साकार।

अज्ञान परिवार का क्या है कहना, 
शिक्षित हैं इसके अनुयायी। 
जो करते विस्तार परिवार का, 
अभिभावक होंगे उत्तरदायी।

नारी डूबी है अंधविश्वास में, 
उनको शिक्षित करना है। 
बढ़ती तीव्र आबादी से, 
उनको परिचित करना है।

सब में शिक्षा का कण देकर, 
विवाह की आयु बढ़ाएंगे। 
नया सवेरा, नया उजाला, 
इस धरती पर लाएंगे। 

                      ..जितेंद्र कुमार



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