"पर्यावरण"
इस सृष्टि की सुंदर रचना,
हर छटा मनमोहक है।
पर्वत,नदियां,वन और वायु,
एक - दूजे का पूरक हैं।
प्रकृति से जो मिला है हमको,
पर्वत, नदियां ,वायु ,जल, वन।
प्रभावित करते जीवन को मेरे,
कहलाता यह पर्यावरण।
धन्य है उस देश की धरती,
प्रकृति की जहां पूजा होती।
सूरज चांद नमन किए जाते,
नदियों का जल निर्मल बहती।
प्रकृति पूजन कोई धर्म नहीं,
उद्देश्य प्रकृति संरक्षण है।
जीवों का अस्तित्व तभी बचेगा,
जब तक दोनों का संतुलन है।
क्षणिक लाभ के लिए हर मानव,
कर रहा यह भूल गंभीर।
काट रहा पेड़ों को निर्मम,
विवश प्रकृति हो गई अधीर।
"जियो और जीने दो",
यह सिद्धांत जरूरी है।
जल,जंगल से रिश्ता जोड़ो,
यह संस्कार जरूरी है।
..जितेंद्र कुमार
3 Comments
Bahot hi khubsurat 👏👏👏
ReplyDelete🤗👌👌👌👌
ReplyDeleteWaaahhhh 👏👏👏 bhut badhiya 👌🏻👌🏻
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