"भारत मां "
मैं स्नेह लुटा रही सदियों से, मेरे आंचल में कई निशानी।
मानो तो मैं भारत मां हूं, न मानो तो पर्वत–पानी।
युग युग से मैं सहती आयी, प्रेम से सारे नखरे।
सुर, नर, मुनि सब गोद में खेले, पुनः जनम को तरसे।
मेरे कण –कण में लिखी है, हर युग की अमिट कहानी।
मानो तो मैं भारत मां हूं, न मानो तो पर्वत–पानी।
कोई बंजर कह दुत्कारे, कोई अन्न अकूत उगाए।
कोई मार गरीबी झेले, कोई सोना–चांदी लुटाए।
मेरा दामन भरा है मणियों से, न पाओ तेरी नादानी।
मानो तो मैं भारत मां हूं, न मानो तो पर्वत–पानी।
बापू,युधिष्ठिर,हरिश्चंद्र ने, यहां सत्य पे चलना सिखाए।
वीर शिवाजी, महाराणा ने, यहां वीरों सा लड़ना सिखाए।
आज भी सुंदर संस्कृति मेरी, हर इंसान की है मीठी वाणी।
मानो तो मैं भारत मां हूं, न मानो तो पर्वत–पानी।
.... जितेंद्र कुमार
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