" एक आरजू"

   " एक आरजू "
..................

सैंया, लईहा न सौतन घर वीरान हो जाई।
ये सीता, अपने घर में सौतन के मेहमान हो जाई।

देवता के समान पूजव तोहरा हम सैंया,
रोज हम धोके पियव तोहरो चरणियां,
सुन के नाम सौतन के, हम बेजान हो जाई।
ये सीता अपने घर में सौतन के मेहमान हो जाई।
 
हर दुख सहब हस के, मानब हम बचनियां,
दिल खुश होला हमर, पुकारअ कहके धनियां,
नैन जो लड़ईवा कहीं, जीवन नर्क समान हो जाई।
ये सीता अपने घर में सौतन के मेहमान हो जाई।

सैंया, लईहा न सौतन घर वीरान हो जाई।
ये सीता, अपने घर में सौतन के मेहमान हो जाई।

               ...जितेंद्र कुमार



Post a Comment

0 Comments