"कान्हा के मुख माटी"

एक बार मैया यशोदा कान्हा को जमीन पर बैठाकर कुछ काम करने में व्यस्त हो गई, तभी कान्हा ने पृथ्वी का मान बढ़ाने के लिए माटी को नैवेद्य के रूप में पान करने लगे।
इसी बीच वहां से गुजर रही यशोदा की सखियों ने देख लिया और उनकी शिकायत लेकर यशोदा के पास पहुंच गई।

 "कान्हा के मुख माटी"


सखी यशोदा तेरा कन्हैया, दिखता कितना भोला है।
छुप–छुपाकर, आखें बचाकर, खा रहा माटी गोला है।

क्या कान्हा को नहीं खिलाती, 
माखन,मिश्री,मलाई।
बहती घर में दूध की नदियां,
करती खूब बड़ाई।
माखन चोरी घर–घर करता, नटखट तेरा छोरा है।
छुप–छुपाकर,आखें बचाकर, खा रहा माटी गोला
है।

सुनकर ताना माई यशोदा,
हो गई आग बबूला।
छोड़ काम सब पास जा पहुंची,
जहां था उनका लल्ला।
देख यशोदा हो गई मूर्छित, कान्हा मुंह जब खोला है।
छुप–छुपाकर, आखें बचाकर, खा रहा माटी गोला है।

नभ,नक्षत्र, ब्रह्माण्ड सकल था,
कान्हा के मुख अंदर।
करके दर्शन विराट रूप का,
किए नमन भी सादर।
टूटी जो मूर्छा माया छाई, लल्ला पे जादू–टोना है।
छुप–छुपाकर, आखें बचाकर, खा रहा माटी गोला है।

सखी यशोदा तेरा कन्हैया, दिखता कितना भोला है।
छुप–छुपाकर, आखें बचाकर, खा रहा माटी गोला है।
          
           .. जितेंद्र कुमार 

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