एक पढ़ा लिखा लड़का अपने पिता से अपनी एक अच्छी सोच जाहिर करते हुए ...
"दहेज"
नाहि चाही दहेज पापा,चाही पढ़ल कनियां।
दहेज के लोभी केतना लेलस,
जान बहू और बेटी के।
दहेज के खातिर जुल्मी बनलस,
नईखे रहम बेरहमी के।
बीच मंडप में रुपिया मांगे,जैसे मांगी भिखरिया।
नाहि चाही दहेज पापा,चाही पढ़ल कनियां।
आजकल के फैशन कैलस,
बर्बाद जीवन लयकी के।
माई बाप के प्यार भूलाई,
करके शादी मर्जी से।
टिप टॉप या टैटु बाली, नैखे चाही परियां।
नाहि चाही दहेज पापा,चाही पढ़ल कनियां।
मान बढईहें घर कुल के,
पावन रखिहें अचरवा।
आदर मिलिहें, प्रेम भी पयिहें,
जैसे तुलसी अंगनवां।
घर के कोना कोना दमकी, रखीहें जब चरणियां।
नाहि चाही दहेज पापा,चाही पढल कनियां।
तिनका तिनका जोड़ी जोड़ी के,
घरवा के स्वर्ग बनैहें।
सावित्री,सीता जैसन रही,
सुख –दुःख में साथ निभैहें।
घरवा स्वर्ग से सुनर होला,जो बोलिहें मधुर बचनियां।
नाहि चाही दहेज पापा, ऐसन चाही कनियां।
नाहि चाही दहेज पापा,चाही पढल कनियां।
..जितेंद्र कुमार
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