"गरीब सुदामा"

सुदामा का परिवार भीषण गरीबी से गुजर रहा था।उनकी पत्नी सुशीला उन्हें कृष्ण के पास जाने के लिए बहुत प्रकार से मनाती हुई..

"गरीब सुदामा"
......….......….
रौवा जात नईखे काहे, कन्हैया के पास जी।
मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।

कहत रहलु बचपन के, मित्र मोर कन्हाई,
साथ खेललू , साथ पढलू , बनलू गुरु भाई।
रौवा रटत रही कान्हा–कान्हा, फिर काहे उदास जी।
मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।

गांव– गांव से भिक्षा मांगली, तबहूं न भूख मिटाई,
जे दिन भिक्षा नाहीं मिली, लयका भूखल सोई।
निकल जाई कब प्राण भी तन से, अब कन्हैया पे आस जी।
मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।

घर के दुखवा सहल न जाला, केकरा से हम बताई,
नईखे एको दाना घरवा, नईखे एको पाई।
नाहिं मांगी हम महल–अटारी, बस रख दिहीं सर पे हाथ जी।
मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।

निःस्वार्थ मन जाके मिली, बात मोर मानी,
त्रिलोकदर्शी कान्हा रही, ऊहो सबकुछ जानी।
बिन मांगे ऊ सबकुछ दिहीं, नईखे करिहें निराश जी,
मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।

मिट जयति गरीबी क्षण में, जो बन जयति दास जी।
रौवा जात नईखे काहे, कन्हैया के पास जी।

               ..जितेंद्र कुमार

Post a Comment

0 Comments