" मिथिला में राम "
विश्वामित्र संग सुंदर दो बालक, मिथिला नगरी पधारे हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
चंदन तिलक ललाट पे चमके,
वस्त्र बदन पर शोभे।
कांधे तरकश धनुष विराजे,
कानों में कुंडल डोले।
मूरत बन गए देखा जिसने, ठहरी उनकी नजरें हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
पहुंची खबर राजमहल में,
मुनि संग सुंदर दो बालक।
चारो दिशाएं महक उठी है,
कोई शुभ घड़ी की है आहट।
हर्षित हो गए देख जनक जी, दिल में खुशी हिलोरें हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
सादर आसन दिए महल में,
और सेवा सत्कार किए।
बैठ मुनि संग अपनी, उनकी,
किस्से बातें चार किए।
उत्सुक होकर पूछे जनक जी, मुनि वर किनके छोरें हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
विश्वामित्र जी देख राम को,
मंद मंद मुस्काए।
बोले अयोध्या सरयुग तीरे,
मन को खूब लुभाए।
अवधपति ये दसरथ जी के, प्राणों से भी प्यारे हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
पूजा के लिए दोनो भ्राता,
लाते बाग से फूल –पाती।
सिया भी गौरी पूजन को,
संग सहेली मंदिर जाती।
देख राम को गौरी से सीता, वर पति रूप में मांगे है।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
राजा जनक की भारी प्रतिज्ञा,
जो शिव–धनुष को तोड़ेगा।
पहिराएगी वर– माला सीता,
सिया, संग ले जायेगा।
हिला न पाया वीर कोई भी,सब बैठे सिर झुकाए हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
उठे मूढ़ जब एक साथ सब,
शिव धनुष उठाने।
देख जनक जी इस दृश्य को,
लगे विलख कर रोने।
है धिक्कार तुम सब वीरों को,वीर विहीन धरा ये बोलें हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
होते देख अधीर जनक को,
विश्वामित्र जी बोले,
उठो राम जा चाप चढ़ाओ,
सीता से नाता जोड़ो।
चले राम, ले आशीष गुरु से,तोड़े जैसे तिनके हैं।
श्याम रंग प्रभु रामचंद्र जी, लक्ष्मण गोरे –गोरे हैं।
.. जितेन्द्र कुमार
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