मां अब मैं भी बड़ा हो गया,
जी करता पढ़ने जाऊं।
पढ़कर हर अच्छी पुस्तक को,
ऊंचा, बड़ा मैं पद पाऊं।
सिला दो मां एक थैला मुझको,
पुस्तक कलम भी ला देना।
दरकार नहीं जूते की मुझको,
बस एक कमीज सिला देना।
स्वयं सवेरे जागकर अपना,
बस्ता खुद सजाऊंगा।
लाद पीठ पर थैला अपना,
मित्रों संग स्कूल जाऊंगा।
छोड़ खिलौने से खेलना,
कलम पकड़ना सीखूंगा।
सुना है इसमें खूब है ताकत,
मैं कलम से जीतना सीखूंगा।
शिक्षा, शिष्टाचार ग्रहण कर,
शिक्षित, सभ्य बनूंगा मैं।
ईमानदारी और उत्तम विचार से,
देश की सेवा करूंगा मैं।
.. जितेन्द्र कुमार
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