अंत कर आतंक असुर का,
निज हाथों प्रभु राम,
सौंप सिंहासन लंका का,
भक्त विभीषण नाम।
किए पूर्ण सब यज्ञ मुनि का,
करके असुर विहीन।
निर्भय सुर, नर, मुनि हुए,
निज कारज में लीन।
वचन पिता का पूरा कर,
चौदह वर्ष वनवास।
लौट चले प्रभु राम अयोध्या,
सीता, अनुज के साथ।
आकाश मार्ग से चल पड़े,
बैठ पुष्पक विमान।
राम, लखन सीता के साथ,
चले वीर हनुमान।
फैली खबर अयोध्या में,
गृह लौट रहे हैं राम।
संग में सीता सकुशल,
लक्ष्मण राम के प्राण।
सजने लगी अयोध्या नगरी,
सुन यह खुशी की बात।
जले दीप हर घर के द्वारे,
पुष्प - हार जन - जन के हाथ।
जगमगा उठी पूरी नगरी,
पग पग जले घी के दीप।
सजी हो ऐसे दुल्हन जैसी,
अमावश पे हुई चांदनी की जीत।
दीप खुशी का प्रतीक है,
उजाला देता है उत्साह।
मिटे मन से गम का अंधेरा,
उद्देश्य यही "दीपावली" त्योहार।
.. जितेंद्र कुमार
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