स्वार्थ,लोभ और क्रोध को,
त्याग करे जो कर्म।
बांट खुशी, खुद खुश रहे,
इससे बड़ा न धर्म।

बढ़े कदम न उस तरफ,
मिटे पुण्य,संस्कार।
सुंदर जीवन नर्क बने,
आगे पथ अंधकार।

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