"काल कोरोना"
एक मासूम सा नन्हा बच्चा, पापा से वह बोला।
थक गया अब नहीं खेलना, यह लुका छुपी का खेला।
घर का हर एक कोना ढूंढा, मां नहीं पड़ी दिखाई।
पापा बतलाओ मम्मी मेरी, अपने को कहां छुपाई।
कहकर कभी बहलाती थी मुझको, तू मेरा चांद का टुकड़ा।
फिर क्यों आज छुपी है मुझसे, बिन देखे मेरा मुखड़ा।
एकबार तो झूठा भी मैंने, रोकर मां को पुकारा।
वापस कोई जवाब न आया, देने मुझे सहारा।
कभी बोलते उपर छत पर, कभी सोयी ओढ़े रजाई है।
पापा अब तो सच बोलो हमसे, कहां छुपने की जगह बताई है?
पापा सुन बच्चे की बोली, रोक न सके आंसू की धार।
बोले रो - रो क़ाल "कोरोना", छीन ले गया मां का प्यार।
.. जितेन्द्र कुमार
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