"कोरोना का कहर"

"कोरोना का कहर"

"कोरोना का कहर"

गूंज रहा नभ क्रंदन से,
चारो दिशायें चीखों से।
थम नहीं रहा मौत का तांडव,
रूबरू सभी हैं मौतों से।

कोई खोया सुहाग,संतान,
कई हो गए असहाय,अनाथ।
रो रहा वह, खोया जिसने,
भाई जैसे साथी का साथ।

इम्तिहान ले रहें ईश्वर हमसे,
इंसानियत किसमें कितना है।
दुःख में ही पहचाने जाते,
कौन पराया,कौन अपना है।

भरे बाजार में खड़ा बेशर्म,
बेच रहा अपना ईमान।
लगा रहा इमान की बोली,
गिर चुका कितना इंसान।

भले बंधु की कमी नहीं,
निस्वार्थ दे रहे अपना योगदान।
है इंसानियत आज भी जिंदा,
इंसान रूप  हैं ये भगवान।

               .. जितेंद्र कुमार






 
 

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