मां आंखें खोल कर देखो दर पे,
भीड़ भक्त की कर जोड़ खड़ी।
आई आज यह कैसी विपदा,
चारों ओर कोहराम मची।
तांडव मचा रहा कोरोना,
मां तुझपे अब है आश लगी।
करो जीवन की रक्षा वरना,
सृष्टि अंत में देर नहीं।
जब - जब छाई धरा पे संकट,
तुम रक्षा करने दौड़ी आई।
शुम्भ- निशुंभ, महिषासुर को तुमने,
वध कर भू पर सृष्टि बचाई।
करता हूं स्वीकार भूल मैं,
आज धर्म का सम्मान नहीं।
पूजा, हवन, यज्ञ से हमको,
मिलता क्या कुछ ज्ञान नहीं।
घी,धूप थे हवन में जलते,
जलते थे घर में घी के दीप।
लोग करते पेड़ों की पूजा,
पीपल, तुलसी, बरगद,नीम।
कृपा- दृष्टि मां सबपे रखना,
भूल सेवक की माफ करो।
कष्ट हरो, संकट से निकालो,
इस विपदा का नाश करो।
.. जितेंद्र कुमार
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