"निज कर्म"
नसीब नहीं है सबको यहां,
ईश्वर का दुर्लभ वरदान।
पर, किया कोशिश जिद कर जिसने,
पा लिया सबकुछ इंसान।
नजर हो निज लक्ष्य पर,
रख हौसला, हार मत हिम्मत।
होगा हासिल हरिपद भी तुमको,
हो प्रयास जो अविचल, अनवरत।
प्रति वर्ष लगन,उत्साह से,
डालता बीज वह मिट्टी खोद।
अतिवृष्टि या अनावृष्टि की भय से,
निज कर्म कृषक, क्या देता छोड़?
नर नित्य निज कर्म करो अथक,
तुम भी सितारों की तरह चमकोगे।
खिलकर उस फूल की तरह तुम,
चमन में एक दिन महकोगे।
..जितेंद्र कुमार
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