"कोयल"
कोयल कभी मेरे छत,आंगन,
आ अपनी मीठी तान सुनाओ।
मेरे मन की कटुता सारी,
अपनी गीत से हर ले जाओ।
पाई है सम्मान सर्वदा,
बोल मधु सी मीठी बोल।
होते सुन सब प्राणी पुलकित,
पर मांगी नहीं दाम मुंह खोल।
जब राम रुके थे पंचवटी में,
बनकर वन में वनवासी।
सुनाकर अपनी मीठी गीत तुम,
उन्हें बनाया प्रखर मृदुभाषी।
शायद तुम मधुवन में भी,
हर डाल- डाल पर गायी होगी।
कदम के नीचे तुम कान्हा को,
वंशी बजाने सिखलाई होगी।
आज यहां,पग - पग फैला द्वेष - कलह,
सुनने को तरसे मीठी बोल।
भाई से भाई स्वार्थ के लिए,
करते रहते बल की तौल।
कोकिल अपने मीठे स्वर से,
उनपर छोड़ो अमिट प्रभाव।
कर स्वीकार वे सदाचरण को,
करें त्याग सब द्वेष - तनाव।
.. जितेन्द्र कुमार
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