"जमाने के जनाब"

"जमाने के जनाब"

"जमाने के जनाब"

जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।
चेहरे सभी दीखते हैं, पहने हुए नकाब।

मुस्कुराहट छीन गई, 
जलते हैं ओंठ मुस्कुराने से।
रही न हंसी चेहरों पर, 
चेहरे दिखते हैं वीराने से।

बुझ रहा है हर दिलों में, प्रेम का चिराग।
जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।

प्रेम है पर पड़ोस से, 
अपने खून से नफरत।
भाई - भाई से लड़ रहे, 
बेटों में भी ये हिम्मत।

हर जगह व्याप्त है, सब में द्वेष तनाव।
जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।

दोस्त भी दगा देते हैं, 
वक्त पे मुकर जाते हैं।
बुरे दिन में तो और, 
आंखें फेर गुजर जाते हैं।

टूटते दिल से फूट रहा, नफरत का सैलाव।
जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।

आज फिर पांडव को मौन देख,
निर्भय है कौरव अत्याचारी।
आज भी पुकार रही द्रौपदी,
बचाओ लाज मुरारी।

क्या फिर आएंगे कृष्ण यहां? मिलेगा कहां जवाब?
जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।

खतरे में है मानवता, 
बढ़ रहा है अत्याचार। 
कुरीति भी अभिशाप है, 
इस पर करें प्रहार।

कर प्रण हम अपने को बदले ,बने सभ्य समाज।
जमाने बदले नहीं, बदल गए जनाब।

                                               ..जितेंद्र कुमार




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