"पृथ्वी"

    "पृथ्वी"

"पृथ्वी"

घूम रही धरती लट्टू जैसी,
पर है थोड़ी झुकी हुई।
है आकार नारंगी जैसा,
ऊपर-नीचे दबी हुई।

तीन भाग पर जल है फैला,
एक भाग में स्थल है।
इस पर पर्वत गहरी नदियां,
जन जीवन विस्तार सकल है।

घूमती जब धुरी पर धरती,
दिन-रात तब होती है।
लगाती जब  सूरज का चक्कर,
ऋतु यहां बदलती है।

चारों ओर विशाल वायुमंडल,
ऑक्सीजन से भरपूर है।
एक परत ओजोन नाम से,
जन-जन में मशहूर है।

सौरमंडल की यह प्यारी बेटी,
नीली साड़ी में लिपटी है।
अन्न- जल देकर सकल जीवन को,
आंचल बीच समेटी है

                           ..जितेंद्र कुमार

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