"पृथ्वी"
घूम रही धरती लट्टू जैसी,
पर है थोड़ी झुकी हुई।
है आकार नारंगी जैसा,
ऊपर-नीचे दबी हुई।
तीन भाग पर जल है फैला,
एक भाग में स्थल है।
इस पर पर्वत गहरी नदियां,
जन जीवन विस्तार सकल है।
घूमती जब धुरी पर धरती,
दिन-रात तब होती है।
लगाती जब सूरज का चक्कर,
ऋतु यहां बदलती है।
चारों ओर विशाल वायुमंडल,
ऑक्सीजन से भरपूर है।
एक परत ओजोन नाम से,
जन-जन में मशहूर है।
सौरमंडल की यह प्यारी बेटी,
नीली साड़ी में लिपटी है।
अन्न- जल देकर सकल जीवन को,
आंचल बीच समेटी है
..जितेंद्र कुमार
1 Comments
Fabulous 👍🏻
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