"प्यारे बापू"

"प्यारे बापू"

"प्यारे बापू"

पास रखते नहीं थे,
कोई थैले या तिजोरी।
लिए रहते एक हाथ गीता,
दूसरे में छड़ी।

वह भी कीमती नहीं,
थी सूखी लकड़ी।

पहनते न थे पैरों में,
कोई जूते- मोजे।
वे चलते थे नंगे पांव,
तो कभी पहनते खड़ाऊं।

वह भी सोने की नहीं,
थी सूखी  लकड़ी।

देश की सेवा करते रहे आजीवन,
लक्ष्य था इनका आजादी पाना।
भारत मां की सेवा में मशगूल,
हो गए थे दुबले-पतले।

अहिंसा के पुजारी ऐसे हो गए,
जैसे हों कोई सूखी लकड़ी।
                                
                         ..जितेंद्र कुमार

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