"जल"

 "जल"
"जल"

इस सृष्टि का,
हर वस्तु मनोहर।
पर,जल  धरा पर,
अनमोल धरोहर।

ईश्वर ने हम सबको,
हर वांछित वस्तु प्रदान किया।
अमृत सम जल  भी भेंट मिला,
यह जीवों को जीवन दान दिया।

धरती पर पानी भरा पड़ा,
विस्तार में फैला सागर है।
पर,प्यारा वह बूंद हमें,
जो प्यास बुझादे, वह गागर है।

हम यह समझें जल है सीमित,
जो जल  हमें जरूरी है।
बर्बाद न हो यह ध्यान रहे,
जल  जीवन की धुरी है।

सब मिल करें,
उपाय हजार।
स्वच्छ जल  ना ,
बहे बेकार।

जल  का संकट हो ना आगे,
जल  संचय हमें करना है।
मिला विरासत में जो हमको,
उसे सुरक्षित रखना है।
                               
                               ..जितेंद्र कुमार

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