"चुनाव"
चुनावी वयार।
नेता जी को आयी,
प्रजा की ख्याल।
सोए थे वे,
गहरी नींद में।
उठे चौंक कर,
आँख मिंचते।
वे भूल गए थे,
किए हुए वादे।
ताजा किए वे,
अपनी यादें।
छपवाकर फोटो पोस्टर में,
आदेश दिए चिपकाने की।
तय कर तारीख , दिन ,समय,
किए घोषणा जाने की।
मंच बना था,
खूब सजाकर।
बैठी थी जनता,
आंखें फाड़कर।
हुई शोर,
नेताजी आए
थे रुमाल से,
मुंह छुपाए।
मंच पे चढ़कर,
कर जोड़ नमस्कार किए।
बोले बड़े ही नम्र से,
आपने प्रेम अपार दिए।
हंसे, हंसाए, मुस्कुराए भी,
कब तक रहते शर्माते।
किए गरजकर पुराने वादे,
आ रहे थे अबतक भरमाते।
भ्रम में पड़ी विवश थी जनता,
कौन है सच्चा कौन बड़बोल।
जान,समझ,पहचान कर भी,
जनता ने दिया उन्हें ही वोट।
प्रतीक्षा में थे लोग खड़े,
हुई घोषणा परिणाम का।
गूंज उठा फिर वही नाम,
जो कभी बदनाम था।
सुकून मिला उन्हें जीत से,
पर थकान से थे परेशान।
लंबी जंभाई लेकर फिर,
सो गए वे चादर तान।
..जितेंद्र कुमार
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